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Thursday 27 June 2013

दाता मांगन शाह के दर से कोई नहीं लौटा खाली


मान्यता है कि मजार की चुटकी भर मिट्टी से बन जाती है बिगड.ी
उर्स में हर साल बढ. रही जायरीनों की संख्या
दो सौ साल से हिंदू व मुसलिम आते हैं साथ
सांसद व विधायक ने की चादरपोशी
चादरपोशी के बाद इबादत करते सांसद, विधायक व अन्य .बिहपुर प्रखंड के मिलकी गांव में बुधवार आधी रात से दाता मांगन शाह का उर्स-ए-पाक शुरू हो गया. दूसरे दिन गुरुवार को सांसद शाहनवाज हुसैन एवं विधायक इ. शैलेंद्र दाता के चौखट पर पहुंचे, जहां दोनों ने दाता की जियारत कर चादरपोशी की. इससे पूर्व सांसद ने उर्स कमेटी के कार्यालय में कहा कि उन्होंने बीते वर्ष यहां 51 लाख रुपये की लागत से सामुदायिक भवन बनवाने की घोषणा की थी. उस भवन के फस्र्ट फ्लोर का टेंडर हो गया है. सांसद ने कहा कि हम सिर्फ सड.क नहीं दिलों को जोड.ते हैं. विधायक शैलेन्द्र ने कहा कि दाता मांगन शाह का उर्स सांप्रदायिक एकता भाईचारे व प्यार का प्रतीक है. इस मौके पर भाजपा जिलाध्यक्ष सुबोध सिंह कुशवाहा, बिहपुर खानका के गद्दीनशीं कोनैन खां फरीदी, पूर्व प्रमुख अरविंद चौधरी, गौरव, ज्ञानदेव, प्रभु चौधरी, मुकेश राणा आदि समेत उर्स कमेटी के पदाधिकारी व कई गणमान्य लोग मौजूद थे. गुरुवार को ही बिहपुर खानका की ओर से गद्दीनशीं एवं नायब गद्दीनशीं मौलाना शब्बर खां फरीदी, बिहपुर रेलवे वेंडर कमेटी एवं राजद के जिलाध्यक्ष डॉ चक्रपाणि हिमांशु, कहलगांव प्रमुख रानी देवी, बिहपुर मध्य के पैक्स अध्यक्ष अलख निरंजन पासवान, सिंटु कुमार आदि ने दाता के मजार पर चादरपोशी की. यहां लगे मेले में दूर-दराज से आये जायरीन खूब आनंद उठा रहे हैं.मान्यता है कि मजार की चुटकी भर मिट्टी से बन जाती है बिगड.ी

उर्स में हर साल बढ. रही जायरीनों की संख्या

दो सौ साल से हिंदू व मुसलिम आते हैं

कौमी एकता व आपसी मिल्लत के प्रतीक प्रखंड के मिलकी गांव में बुधवार को शुरू हुए दाता मांगन शाह के उर्स में जायरीनों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है. दाता के दर पर हिंदू-मुसलिम समान भक्ति भाव से आते हैं. हिंदू दाता के मजार पर पूजा-अर्चना कर रहे हैं, वहीं साथ खडे. होकर जायरीन भी उसी र्शद्धा से नियाज फातिहा करा रहे हैं. जायरीनों का कहना है कि जब-जब दिल में सी मुराद लेकर यहां पहुंचे, दाता ने जरूर पूरी की. यही कारण है कि दाता के उर्स में हर साल जायरीनों की संख्या में वृद्धि हो रही है. मजार पर आने वाले जायरीन एक चुटकी मिट्टी जरूर लेकर जाते हैं. जायरीनों का ऐसा मानना है कि दाता के दर की एक चुटकी मिट्टी से अकीदतमंदों का बिगड.ा नसीब बन सकता है. मजार से सटे विशाल वटवृक्ष नि:संतान महिलाओं के लिए दाता की रहमत है. यहां नि:संतान महिलाएं अपने आंचल को फाड. कर उसमें एक पत्थर का टुकड.ा देकर वट वृक्ष के तने में बांधती है. इसके कुछ माह या वर्ष बाद उस नि:संतान महिला की सूनी गोद आबाद हो जाती है. यहां करीब दो सौ साल से हिंदू मुसलिम न सिर्फ एक साथ पूजा व सजदा करते हैं, बल्कि एक साथ दाता के उर्स-ए-पाक का संयोजन व संचालन भी करते आ रहे हैं. इस मजार पर आज भी पहली चादरपोशी हिंदू कायस्थ परिवार द्वारा ही की जाती है.

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