गोधुली की बेला समाप्त होने को थी. ठंड तन बदन में सिहरन पैदा करने के लिए काफी था. सड़क पर खेलने वाले बच्चे अपने अपने घर जा चुके थे. सड़क पर इक्के दुक्के लोग आ जा रहे थे. कुछ देर पहले ही अपने छोटे से किराना दुकान में महेश्वर ने पाव भर चीनी देकर एक ग्राहक को चलता किया था. तभी गांव के ओर से ही तीन युवक जो पूरी तरह से अनजान थे सभी महेश्वर की दुकान की ओर बढ़ रहे थे. महेश्वेर किसी को नहीं पहचानता था. लेकिन तीनों के पहनावे को देख कर महेश्वेर ने यह अंदाजा लगा ही लिया होगा कि तीनों गांव में अपने सगे संबंधियों के यहां आये होंगे. तीनों युवकों की चाल दुकान से पांच मीटर की दूरी पर आते ही धीमी हो गयी थी. अगले ही पल तीनों युवकों में से एक महेश्वर के सामने था. महेश्वेर कुछ पूछता कि अगले ही उस युवक के हाथ में पिस्तौल था जिसका रुख उसकी की ओर था. महेश्वेर कुछ बोलना चाह ही रहा था कि युवक ने गोली चला दी. गोली महेश्वर के पेट में जा लगी थी. महेष्वर जमीन पर गिर चुका था. तभी दूसरा लड़के ने ठीक उसी अंदाज में गोली चलायी जो छाती के पास जा लगी. पलक झपकते ही तीसरा लड़का वहां आ धमका. तीसरे ने गोली तो तांन दिया था लेकिन वह उसे फायर नहीं कर पा रहा था. तभी पहले लड़के ने तीसरे लड़के को धक्का देकर हटाया और महेश्वर को माथे के पास जाकर गोली दाग दी. महेश्वेर जमीन पर गिर कर पूरी तरह से अचेत हो चुका था. आस पास के छतों से कुछ लोग यह नजारा देख रहे थे लेकिन कोई कुछ समझ पाते तीनों अपना वारदात को अंजाम देकर भाग लिए थे. तीनों अपराधियों को गोली चलाने में एक मिनट से भी कम का समय लगा था. तीनों चौक की तरफ भागे थे. इसके बाद आस पास के लोग स्थल पर आ चुके थे. महेश्वर खून से लथ पथ था. परिजन उसे इलाज के लिए भागलपुर लेकर गये. जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. यह कहानी इस्माइलपुर प्रखंड के छोटी परवत्ता गांव की है. बता दें कि 45 वसंत देख चुका महेश्वर के किराने की दुकानदारी वाला जीवन उसके जिंदगी की दूसरी पारी थी. फ्लेश बैक में जायेंगे तो पता चलेगा कि गंगा दियारा में महेश्वर का एक समय जलवा हुआ करता था. अपने आका के संरक्षण में वह दियारा में जम कर उधम मचाता था. गंगा दियारा के कैलाश मंडल जैसे कुख्यात को सीधी चुनौती देकर गोली मारने में महेश्वर मंडल को देर न लगी थी. दियारा कुख्यात फूचो मंडल, सीधा साधा कारु साह भी एक समय में महेश्वर की गोलियों का शिकार होकर मारा गया था. कहते हैं कि मनुष्य की पिछली जिंदगी उसके साथ परछाई के तरह चलती है. यही हश्र हुआ. मुख्यधारा से जुड़ने के बाद भी महेश्वर आम आदमी की जिंदगी नहीं जी सका. अब बताते हैं कि हत्या के बाद क्या हुआ. 14 जून को हत्या के बाद महेश्वर की पत्नी के बयान पर तीन लोगों जिसमें दो भाइयों कांग्रेस मंडल और वकील मंडल के अलावा पेरु मंडल को आरोपी बनाया गया. तीनों से महेश्वर की जानी दुश्मनी थी. एक दशक पूर्व कांग्रेसी मंडल के भाई फोचो मंडल की हत्या महेश्वेर मंडल ने कर दी थी. जिसके प्रतिषोध में महेश्वर की हत्या की गयी. लेकिन अगर हत्या के तरीकों और सूत्रों से मिली सूचना पर गौर करें तो हत्या पशेवर अपराधियों ने किया है. हो सकता है कि आरोपियों से ही प्रेरित होकर इस तरह के वारदात को अंजाम दिया गया हो लेकिन हत्या के तरीकों को देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि उक्त हत्या का तरीका दियारा के परंपरागत तरीके में नहीं आता है. इस्माइलपुर थानाध्यक्ष संतोष कुमार वरीय पदाधिकारियों के निर्देशन में उक्त कांड की छान बीन शुरु कर चुके हैं. बताना जरूरी है कि महेश्वेर जदयू के विधायक व ग्रामीण नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल के करीबी थे.
Sunday 16 November 2014
बोली से भी तेज चली गोली और मारा गया महेश्वर
गोधुली की बेला समाप्त होने को थी. ठंड तन बदन में सिहरन पैदा करने के लिए काफी था. सड़क पर खेलने वाले बच्चे अपने अपने घर जा चुके थे. सड़क पर इक्के दुक्के लोग आ जा रहे थे. कुछ देर पहले ही अपने छोटे से किराना दुकान में महेश्वर ने पाव भर चीनी देकर एक ग्राहक को चलता किया था. तभी गांव के ओर से ही तीन युवक जो पूरी तरह से अनजान थे सभी महेश्वर की दुकान की ओर बढ़ रहे थे. महेश्वेर किसी को नहीं पहचानता था. लेकिन तीनों के पहनावे को देख कर महेश्वेर ने यह अंदाजा लगा ही लिया होगा कि तीनों गांव में अपने सगे संबंधियों के यहां आये होंगे. तीनों युवकों की चाल दुकान से पांच मीटर की दूरी पर आते ही धीमी हो गयी थी. अगले ही पल तीनों युवकों में से एक महेश्वर के सामने था. महेश्वेर कुछ पूछता कि अगले ही उस युवक के हाथ में पिस्तौल था जिसका रुख उसकी की ओर था. महेश्वेर कुछ बोलना चाह ही रहा था कि युवक ने गोली चला दी. गोली महेश्वर के पेट में जा लगी थी. महेष्वर जमीन पर गिर चुका था. तभी दूसरा लड़के ने ठीक उसी अंदाज में गोली चलायी जो छाती के पास जा लगी. पलक झपकते ही तीसरा लड़का वहां आ धमका. तीसरे ने गोली तो तांन दिया था लेकिन वह उसे फायर नहीं कर पा रहा था. तभी पहले लड़के ने तीसरे लड़के को धक्का देकर हटाया और महेश्वर को माथे के पास जाकर गोली दाग दी. महेश्वेर जमीन पर गिर कर पूरी तरह से अचेत हो चुका था. आस पास के छतों से कुछ लोग यह नजारा देख रहे थे लेकिन कोई कुछ समझ पाते तीनों अपना वारदात को अंजाम देकर भाग लिए थे. तीनों अपराधियों को गोली चलाने में एक मिनट से भी कम का समय लगा था. तीनों चौक की तरफ भागे थे. इसके बाद आस पास के लोग स्थल पर आ चुके थे. महेश्वर खून से लथ पथ था. परिजन उसे इलाज के लिए भागलपुर लेकर गये. जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. यह कहानी इस्माइलपुर प्रखंड के छोटी परवत्ता गांव की है. बता दें कि 45 वसंत देख चुका महेश्वर के किराने की दुकानदारी वाला जीवन उसके जिंदगी की दूसरी पारी थी. फ्लेश बैक में जायेंगे तो पता चलेगा कि गंगा दियारा में महेश्वर का एक समय जलवा हुआ करता था. अपने आका के संरक्षण में वह दियारा में जम कर उधम मचाता था. गंगा दियारा के कैलाश मंडल जैसे कुख्यात को सीधी चुनौती देकर गोली मारने में महेश्वर मंडल को देर न लगी थी. दियारा कुख्यात फूचो मंडल, सीधा साधा कारु साह भी एक समय में महेश्वर की गोलियों का शिकार होकर मारा गया था. कहते हैं कि मनुष्य की पिछली जिंदगी उसके साथ परछाई के तरह चलती है. यही हश्र हुआ. मुख्यधारा से जुड़ने के बाद भी महेश्वर आम आदमी की जिंदगी नहीं जी सका. अब बताते हैं कि हत्या के बाद क्या हुआ. 14 जून को हत्या के बाद महेश्वर की पत्नी के बयान पर तीन लोगों जिसमें दो भाइयों कांग्रेस मंडल और वकील मंडल के अलावा पेरु मंडल को आरोपी बनाया गया. तीनों से महेश्वर की जानी दुश्मनी थी. एक दशक पूर्व कांग्रेसी मंडल के भाई फोचो मंडल की हत्या महेश्वेर मंडल ने कर दी थी. जिसके प्रतिषोध में महेश्वर की हत्या की गयी. लेकिन अगर हत्या के तरीकों और सूत्रों से मिली सूचना पर गौर करें तो हत्या पशेवर अपराधियों ने किया है. हो सकता है कि आरोपियों से ही प्रेरित होकर इस तरह के वारदात को अंजाम दिया गया हो लेकिन हत्या के तरीकों को देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि उक्त हत्या का तरीका दियारा के परंपरागत तरीके में नहीं आता है. इस्माइलपुर थानाध्यक्ष संतोष कुमार वरीय पदाधिकारियों के निर्देशन में उक्त कांड की छान बीन शुरु कर चुके हैं. बताना जरूरी है कि महेश्वेर जदयू के विधायक व ग्रामीण नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल के करीबी थे.
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