रूपेश झा : आज मैं पत्रकारिता से जुड़े एक ऐसा कड़वा सच से पर्दा उठाने जा रहा हूँ जिस से समाज का आम तबका अनभिज्ञ है ! इस सच को सुनकर शायद आपको यकीन ना हो लेकिन सच तो आखिर सच ही होता है ! हालाँकि कुछ पत्रकार भाइयों को यह कड़वा सच हजम नहीं होगा और हो सकता है कुछ पत्रकार भाई इस से सहमत हो ......जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ अखबार जगत का ! प्रखंड स्तर के पत्रकारों का दर्द ऐ
सा दर्द है जिसे ना तो कहते हुए बनता है और ना ही छिपाते हुए ! आप विश्वास नहीं कीजियेगा आज अखबारी जगत में नब्बे प्रतिशत ऐसे प्रखंड/ब्लोक के पत्रकार है जो सिर्फ अपने अनुभव से ही लिखते हैं और कड़ी मेहनत के बावजूद भी सिर्फ पांच सौ से हजार रूपये का मानदेय पाते हैं जबकि कुछ पत्रकारों को तो यह भी नसीब नहीं होता है ! कुछ पत्रकार को न्यूज़ कटिंग के आधार पर पैसे दिए जाते हैं ! अलग-अलग अखबार का अलग-अलग रेट है ! कहीं सिंगल कॉलम पांच रुपया तो डबल कॉलम दस रूपये मिलते हैं ! और बाय लाईन (जिस खबर में पत्रकार के नाम होते हैं ) पर बीस से पचास रूपये तक दिए जाते हैं ! पत्रकार पूरी महीने कि खबर कि कटिंग कर एक-एक कॉलम को जोड़कर अखबार के कार्यालय में जमा करते हैं फिर उन्हें इसके बदले पैसे मिलते हैं ! अब आप जरा सोचिये कि एक ब्लॉक रिपोर्टर कि महीने भर में कितनी खबर प्रकाशित होती होगी और उस हिसाब से उसे महीने का कितना मिलता होगा ! अब जरा सोचिये क्या इतने में किसी पत्रकार का घर-गृहस्थ चलेगा ? अगर नहीं तो फिर ऐसे पत्रकार बंधू क्या करेंगे ? इस सवाल का सीधा जवाब है या तो न्यूज़ छापने के पैसे मांगेंगे या न्यूज़ ना छापने का ! मैं मानता हू कि पत्रकारों को समाज में काफी सम्मान दिया जाता है , लेकिन क्या सम्मान से पेट कि भूख मिटेगी या परिवार चलेगा ! लोग अक्सर इन पत्रकारों के बारे में अपशब्द बोलते हुए सुने जाते हैं , लेकिन बताइए कि अगर पत्रकार गलत धंधे पर उतरते हैं तो इसके लिए जिम्मेदार कौन ?? कुछ विद्वानों ने कहा है कि अगर पत्रकारिता, नेतागिरी और समाज सेवा करना उसी के बस की बात है जो घर से मजबूत हो अन्यथा वह इन पेशों में बर्बाद हो जाता है ! इन पत्रकारों को विज्ञापन का टारगेट दिया जाता है ! मज़बूरी में ये पत्रकार बंधू ऐसे लोगों के सामने हाथ फैलाते हैं भ्रष्ट नेता और जनप्रतिनिधि ....कुछ पत्रकार तो धौंस दिखा कर विज्ञापन लेते हैं और कुछ चमचागिरी कर विज्ञापन लाते हैं ! अब बताइए कलम की धार से भ्रस्टाचार की पोल खोलने और सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों को उठाने वाले ये हाथ अगर भ्रष्ट जन्प्रतिनीधियों और नेताओं के आगे पैसो के लिए हाथ फैलाए तो उनके कलम में कितनी धार रह जाएगी इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है ! इसलिए भाइयों प्रखंड स्तर के पत्रकारों कि मज़बूरी को समझते हुए उन्हें हर चीज के लिए जिम्मेदार ना माने ! ऐसे पत्रकारों का सिर शर्म से तब झुक जाता है जब कोई उनकी सेलेरी पूछ लेता है ! मज़बूरी में ऐसे पत्रकारों को झूठ का सहारा लेना पड़ता है !
इन ब्लॉक स्तर के पत्रकारों को गलत कार्य करने के लिए कोई और नहीं बल्कि मिडिया प्रबंधन ही मजबूर करता है और पत्रकारों की मज़बूरी से तो आप अवगत हो ही गए ......
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