रोशन▪नवगछिया
पिछले एक सप्ताह से शीतलहरी के चलते घर में जलावन का इंतजाम नहीं कर पायी थी मसोमात मंजू. बाों को मुढ.ी-चूड़ा खिला कर यह दिलासा दे रही थी कि धूप खिलने दो, तो जलावन लायेंगे और चूल्हा जला कर खाना पकायेंगे. शनिवार को धूप खिला और इसके साथ ही मंजू और उसके मिल्की गांव की अन्य महिलाओं के चेहरे भी इस बात के लिए खिल गये कि आज उस पार कोसी के कछार से जलावन लायेंगे. इसी खुशी में करीब 20 लोग जलावन लाने चल प.डे. पर मंजू को यह पता नहीं था कि एक सप्ताह से वह अपने बाों को जो दिलासा दे रही है वह पूरी नहीं कर पायेगी. सबने मिल कर जलावन जुटाया. सबने लकड़ी की अपनी-अपनी गठरी उठायी और नाव के पास पहुंच गयी. सभी नाव पर सवार हुए और कोसी के बीच मझधार में नाव भार सहन नहीं कर पायी और डूब गयी. बांकी महिलाएं व अन्य लोग खुद निकल गये तो कुछ निकाले भी गये. लेकिन मंजू कोसी की तेज धार को मात नहीं दे पायी. उधर सूर्य अस्त हो रहा था और इधर मंजू का शव बाहर निकाला जा रहा था. तब तक गांव में अफरातफरी का माहौल. जिसे जो माध्यम मिल रहा था, उसे लेकर विजयघाट की ओर भागे जा रहे थे. मंजू के बाों को यह मालूम नहीं था कि उसकी मां अब नहीं आयेगी. वह तो इस बात का इंतजार कर रहे थे कि उसकी मां आने ही वाली है और घर में ब.डे दिन बाद गरम-गरम खाना पकायेगी. जब उन बाों को पता चला कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है, तो उनकी दहाड़ गांव को गमगीन कर गयी. पड़ोसी दिलासा दे रहे थे. पर बाों को अब गरम-गरम भोजन से ज्यादा मां और उसके हाथों से कौर की याद अधिक तड़पा रही थी.
पहली बार लकड़ी लाने गयी थी अत्रू
मदन अहिल्या महाविद्यालय की इंटर की छात्रा अत्रू आज पहली बार स्थानीय लड़कियों के साथ (दियारा क्षेत्र) विजय घाट गयी थी. अत्रू बताती है कि लकड़ी का बोझा नाव पर लादने के बाद कुछ और लोग बैठने की जिद्द करने लगे. लोग नाव पर लदे लकड़ियों की गठरी पर बैठ गये. कुछ दूर बढ.ने के बाद नाव में पानी भर गया. अत्रू बताती है कि अनुमानत: 12-15 लोग छोटी नाव पर लोग सवार थे. नाव जब डूब गयी तो कुछ लोग तैर कर बाहर निकले.
लकड़ी का बोझा बना तारणहार
मिलकी की 12 वर्षीय सुमन, 10 वर्षीय सीमा और आठ वर्षीय मधु भी लकड़ी लाने गयी थी. नाव जब डूबने लगी तो इन लड़कियों ने लकड़ी के बोझे के सहारे अपनी जान बतायी. सुमन बताती है कि एक महिला बैठने की जिद्द करने लगी. वह बोझे के उपर जबरन बैठ गयी. एक अन्य महिला नौका के सिर पर बैठ गयी. छोटी नौका अधिक लोगों का भार सहन नहीं कर सकी और नौका डूब गयी. सीमा की बातों पर अगर यकीन किया जाये तो नाव पर लगभग 20 लोग सवार थे. सुमन की पड़ोसी रुबी देवी, शोभा देवी उर्फ रंजन देवी व रुबी ने बताया वे लोग तैरना जानती है. कटाव के कारण विस्थापित हो गयी हैं. जलावन की लकड़ी के लिए नौका ही एक मात्र सहारा है.
नवगछिया की नदी मार्ग के भरोसे चौथाई आबादी
ऋषव मिश्रा कृष्णा▪नवगछिया
गंगा कोसी नदी से चारों ओर से घिरे नवगछिया अनुमंडल की एक चौथाई आबादी के यातायात का एक मात्र साधन नदी मार्ग ही है. इसके बावजूद यातायात के लिए कोई सुदृढ. व्यवस्था करने की ओर ध्यान नहीं दिया गया. जिसका खामियाजा बार-बार यहां के लोगों को भुगतना पड़ता है. साल भर में दर्जन भर छोटी-बड़ी नौका दुर्घटनाओं में डेढ. दर्जन से भी अधिक लोग मारे जाते हैं. कोसी क्षेत्र में खैरपुर, कदवा, पुनामा प्रतापनगर, ढोलबज्जा, खरीक प्रखंड में लोकमानपुर, भवनपुरा, बिहपुर प्रखंड में बड़ीखाल आहुती, नारायणपुर प्रखंड में शहजादपुर, दुधैला, रंगरा चौक प्रखंड में साहोरा आदि गांवों के लगभग डेढ. लाख लोगों के प्रखंड मुख्यालय या जिला मुख्यालय तक आने का एक मात्र साधन नौका ही है. खरीक के भवनपुरा निवासी देवबालक ठाकुर उर्फ मंटी, लोकमानपुर के पूर्व सरपंच बादो सिंह, पुनामा प्रताप नगर के मुखिया प्रलय कुमार विद्रोही ने कहा कि प्रशासन को नदी मार्ग पर बेहतर आवागमत की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए. दुर्घटना होने के बाद बचाव कार्य का पूरा दारोमदार ग्रामीणों पर ही होता है. तटवर्ती इलाके के इन लोगों ने कहा कि जिन जगहों पर नाव का परिचालन होता है वहां पर मोटरबोट व अन्य बचाव सामग्री के साथ एक बचाव दल होना चाहिए.
पिछले एक सप्ताह से शीतलहरी के चलते घर में जलावन का इंतजाम नहीं कर पायी थी मसोमात मंजू. बाों को मुढ.ी-चूड़ा खिला कर यह दिलासा दे रही थी कि धूप खिलने दो, तो जलावन लायेंगे और चूल्हा जला कर खाना पकायेंगे. शनिवार को धूप खिला और इसके साथ ही मंजू और उसके मिल्की गांव की अन्य महिलाओं के चेहरे भी इस बात के लिए खिल गये कि आज उस पार कोसी के कछार से जलावन लायेंगे. इसी खुशी में करीब 20 लोग जलावन लाने चल प.डे. पर मंजू को यह पता नहीं था कि एक सप्ताह से वह अपने बाों को जो दिलासा दे रही है वह पूरी नहीं कर पायेगी. सबने मिल कर जलावन जुटाया. सबने लकड़ी की अपनी-अपनी गठरी उठायी और नाव के पास पहुंच गयी. सभी नाव पर सवार हुए और कोसी के बीच मझधार में नाव भार सहन नहीं कर पायी और डूब गयी. बांकी महिलाएं व अन्य लोग खुद निकल गये तो कुछ निकाले भी गये. लेकिन मंजू कोसी की तेज धार को मात नहीं दे पायी. उधर सूर्य अस्त हो रहा था और इधर मंजू का शव बाहर निकाला जा रहा था. तब तक गांव में अफरातफरी का माहौल. जिसे जो माध्यम मिल रहा था, उसे लेकर विजयघाट की ओर भागे जा रहे थे. मंजू के बाों को यह मालूम नहीं था कि उसकी मां अब नहीं आयेगी. वह तो इस बात का इंतजार कर रहे थे कि उसकी मां आने ही वाली है और घर में ब.डे दिन बाद गरम-गरम खाना पकायेगी. जब उन बाों को पता चला कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है, तो उनकी दहाड़ गांव को गमगीन कर गयी. पड़ोसी दिलासा दे रहे थे. पर बाों को अब गरम-गरम भोजन से ज्यादा मां और उसके हाथों से कौर की याद अधिक तड़पा रही थी.
पहली बार लकड़ी लाने गयी थी अत्रू
मदन अहिल्या महाविद्यालय की इंटर की छात्रा अत्रू आज पहली बार स्थानीय लड़कियों के साथ (दियारा क्षेत्र) विजय घाट गयी थी. अत्रू बताती है कि लकड़ी का बोझा नाव पर लादने के बाद कुछ और लोग बैठने की जिद्द करने लगे. लोग नाव पर लदे लकड़ियों की गठरी पर बैठ गये. कुछ दूर बढ.ने के बाद नाव में पानी भर गया. अत्रू बताती है कि अनुमानत: 12-15 लोग छोटी नाव पर लोग सवार थे. नाव जब डूब गयी तो कुछ लोग तैर कर बाहर निकले.
लकड़ी का बोझा बना तारणहार
मिलकी की 12 वर्षीय सुमन, 10 वर्षीय सीमा और आठ वर्षीय मधु भी लकड़ी लाने गयी थी. नाव जब डूबने लगी तो इन लड़कियों ने लकड़ी के बोझे के सहारे अपनी जान बतायी. सुमन बताती है कि एक महिला बैठने की जिद्द करने लगी. वह बोझे के उपर जबरन बैठ गयी. एक अन्य महिला नौका के सिर पर बैठ गयी. छोटी नौका अधिक लोगों का भार सहन नहीं कर सकी और नौका डूब गयी. सीमा की बातों पर अगर यकीन किया जाये तो नाव पर लगभग 20 लोग सवार थे. सुमन की पड़ोसी रुबी देवी, शोभा देवी उर्फ रंजन देवी व रुबी ने बताया वे लोग तैरना जानती है. कटाव के कारण विस्थापित हो गयी हैं. जलावन की लकड़ी के लिए नौका ही एक मात्र सहारा है.
नवगछिया की नदी मार्ग के भरोसे चौथाई आबादी
ऋषव मिश्रा कृष्णा▪नवगछिया
गंगा कोसी नदी से चारों ओर से घिरे नवगछिया अनुमंडल की एक चौथाई आबादी के यातायात का एक मात्र साधन नदी मार्ग ही है. इसके बावजूद यातायात के लिए कोई सुदृढ. व्यवस्था करने की ओर ध्यान नहीं दिया गया. जिसका खामियाजा बार-बार यहां के लोगों को भुगतना पड़ता है. साल भर में दर्जन भर छोटी-बड़ी नौका दुर्घटनाओं में डेढ. दर्जन से भी अधिक लोग मारे जाते हैं. कोसी क्षेत्र में खैरपुर, कदवा, पुनामा प्रतापनगर, ढोलबज्जा, खरीक प्रखंड में लोकमानपुर, भवनपुरा, बिहपुर प्रखंड में बड़ीखाल आहुती, नारायणपुर प्रखंड में शहजादपुर, दुधैला, रंगरा चौक प्रखंड में साहोरा आदि गांवों के लगभग डेढ. लाख लोगों के प्रखंड मुख्यालय या जिला मुख्यालय तक आने का एक मात्र साधन नौका ही है. खरीक के भवनपुरा निवासी देवबालक ठाकुर उर्फ मंटी, लोकमानपुर के पूर्व सरपंच बादो सिंह, पुनामा प्रताप नगर के मुखिया प्रलय कुमार विद्रोही ने कहा कि प्रशासन को नदी मार्ग पर बेहतर आवागमत की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए. दुर्घटना होने के बाद बचाव कार्य का पूरा दारोमदार ग्रामीणों पर ही होता है. तटवर्ती इलाके के इन लोगों ने कहा कि जिन जगहों पर नाव का परिचालन होता है वहां पर मोटरबोट व अन्य बचाव सामग्री के साथ एक बचाव दल होना चाहिए.
टेंडर के बावजूद नहीं जोड़ा गया पीपा पुल
|
प्रशासनिक विफलता : तटवर्ती इलाके के लोग मिल्की घाट पर हुई नौका दुर्घटना का कारण प्रशासनिक विफलता मान रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि आठ जनवरी को भी यही नाव दुर्घटनाग्रस्त हुई थी. हालांकि उस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ था. लेकिन, प्रशासनिक पदाधिकारियों ने सबक नहीं लिया.
नहीं जुड़ा पीपा पुल : पिछले वर्ष नवंबर माह तक पीपा पुल को जोड़ दिया गया था, लेकिन इस वर्ष दिसंबर समाप्त हो जाने के बाद भी पीपा पुल को नहीं जोड़ा गया है. जबकि पीपापुल जोड़ने का टेंडर एक माह पहले हो चुका है. नवगछिया ग्रामीण भाजपा के मंडल अध्यक्ष अशोक जयसवाल ने कहा कि प्रशासनिक पदाधिकारियों द्वारा जानबूझ कर पीपा पुल नहीं जुड़वाया जा रहा है. क्योंकि, पीपा पुल जुड़ जाने से घाट के ठेकेदारों की मोटी कमाई बंद हो जायेगी. ढ.ोलबज्जा के स्थानीय निवासी अशोक जायसवाल ने कहा कि उन लोगों को नवगछिया से घर आने में कम से कम 30 रुपये नाव चालक को देना पड़ता है.कोसी पार के ग्रामीणों पंकज जयसवाल, रमेश कुमार, उपेंद्र पासवान, सुशील कुमार उर्फ छोटू, आशीष कुमार, संजय गुप्ता, मनोज जायसवाल, ननकू मंडल आदि ने कहा कि टेंडर होने के बाद पीपा पुल को क्यों नहीं जोड़ा जा रहा है, यह समझ से परे हैं. पतवार लेकर जो भी बैठ गया वह हो गया नाविक : कोसी नदी में नाव कौन चला रहा है, इससे भी प्रशासन को कोई लेना देना नहीं है. जिसने भी हाथ में पतवार थाम लिया वह नाविक मान लिया जाता है. |
पांच माह कोसी के रहमो करम पर होते हैं लोग
|
नवगछिया प्रखंड की तीन पंचायत कोसी उप पार में हैं. यहां के लोगों को कई तरह की मूलभूत समस्याओं से जूझना पड़ता है. इसका एक मात्र कारण है यातायात का मुकम्मल व्यवस्था न होना. वर्ष 1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की पहल पर पीपा पुल बनवाया गया, लेकिन बाढ. का समय आते ही इस पीपा पुल की हैसियत का पता चल गया. साल में सात माह ही पीपा पुल पर आवागमन हो पाता है. बांकी के पांच माह 50 हजार की आबादी को नौका का ही सहारा लेना पड़ता है. जुलाई अगस्त में कोसी का जलस्तर बढ. जाने से पीपा पुल का संपर्क नदी के किनारे से भंग हो जाता है. इस पुल का सलाना टेंडर होता है और नवंबर माह में प्राय: इस पुल को जोड़ दिया जाता है. लेकि न इस बार करीब 60 लाख में इस पुल का टेंडर हो जाने के एक माह के बाद भी पुल को जोड़ने की प्रक्रिया शुरू नहीं की गयी है. पुल को जोड़ने के लिए पिछले दिनों स्थानीय लोगों ने प्रशासन से मांग भी की थी, जिसे गंभीरता से नहीं लिया गया. लोगों की समस्या का स्थायी निदान तब होगा जब विजय घाट पर पक्का पुल का निर्माण कार्य पूरा हो जायेगा. लेकिन पिछले दिनों पुल के निर्माण में भूमि अधिग्रहण को लेकर अनियमितता के लग रहे आरोपों के बाद अभी यहां के लोगों के लिए सुलभ यातायात की सुविधा काफी दूर दिख रही है.
|
No comments :
Post a Comment