मौनी बाबा का दूसरा संस्करण : मतवाला चाय वाला
तिरकुट बाबू ! सुबह से ही मतवाला चाय पान की कॉम्बो दुकान पर जमे है. जिसने भी उनकी बातों पर सहमती दी, चाय पान मुफ्त ! तिरकुट बाबू के बारे में कहा जाता है कि वे डकार भी लें तो बास राजनीति की आती है. वे सरकारी कर्मचारी थे. 10 साल पहले ही अवकाश प्राप्त किये है. उनके सहकर्मी कहते हैं कि दफ़्तर में भी तिरकुट बाबू का यही हाल था. चुनाव के समय घूस लेना बंद कर देते थे. उनके टेबुल पर जो भी काम कराने आता घूस की रकम के बदले अपने प्रत्याशी और पार्टी के लिए एक वोट मांग लेते थे. ये बात अलग थी कि हर चुनाव में उनकी दलीय निष्ठा बदल जाती थी. अपने पसंदीदा प्रत्याशी से वे कभी मिलते नहीं थे उन्हें वक्तिगत रूप से जानते भी नहीं थे, लेकिन उनके लिए वोट इस तरह मांगते थे जैसे आमुख प्रत्याशी के जीत के बाद तिरकुट बाबू ही पीएम या सीएम बन जायेंगे। भारत कि राजनीति के हर रंग तिरकुट बाबू को जुबानी थी. अवकाश प्राप्त करने के बाद भी वे बदले नहीं। अब फर्क सिर्फ इतना है कि पहले वे वोट मांगने के लिए दफ्तर के टेबुल को जरिया बनाते थे अब मतवाला चाय पान की कॉम्बो दुकान पर चाय पान को जरिया बनाते है. संयोग कहिये तिरकुट बाबू जिस प्रत्याशी के लिए वोट मांगते वह जीत ही जाता था. इस बार भी तिरकुट बाबू के पसंदीदा प्रत्याशी को विजयश्री मिली थी. लेकिन आज मतवाला चाय पान की कॉम्बो दुकान का माहौल ही अलग था. कटघरे में दो लोग थे एक मतवाला चाय वाला, दूसरे तिरकुट बाबू ! चुनाव के समय में मतवाला चाय वाले ने अपनी चाय दुकान का टी स्टाल में रजनीतिक बदलाव कर चाय के दर को 50 फीसदी कम कर दिया था तो अब सामान्य से भी 20 फीसदी ज्यादा रकम ले रहा था. कारण था चीनी और दूध का मुल्य बढ़ गया है. कल तक अच्छे दिन की बात करने वाला मतवाला आजकल मौनी बाबा के दूसरे संस्करण के रूप में दिख रहा था. इधर तिरकुट बाबू भी चुनाव से पहले अच्छे दिन की बात कहा करते थे. अब अच्छे दिन के नाम पर दोनों का घेराव लाजमी था. मतवाला चाय पान की कॉम्बो दुकान रूपी सदन में अच्छे दिन के मुद्दे पर शब्द वाण से छलनी हो कर जब कराहते हुए तिरकुट बाबू राष्ट्रवाद का राग अलापते तो थोड़ी सी राहत मतवाला को भी मिलती थी और वह तिरकुट बाबू को सम्मान की नजरों से देखता था. इसी बीच चाय दुकान पर बिनचुन कक्का के साथ बाबा बेत्तर आ धमकते हैं. बाबा बेत्तर चाय नही पीते है लेकिन चाय दुकान पर कुछ देर के लिए रोजाना आते हैं. चुनाव के समय में ही मतवाला ने अपने चाय दुकान का टी स्टाल में राजनितिक बदलाव कर साम्यवादी विचारधारा के बाबा बेत्तर से दुश्मनी मोल ले ली थी. अब बाबा को को मतवाला फूटी कोडी नहीं सुहाता था. कब बाबा बेत्तर के शब्द मतवाला पर वज्र बन कर गिरे, इस से पहले ही मतवाला ने अपने दुकान का मोर्चा आने एक सहयोगी को थमा कर निकल लिया। तिरकुट बाबू भी बाबा से तर्कहीन बहस करने की हिम्मत नहीं रखते थे. वो भी खिसकने को हुए कि बिनचुन कक्का ने हालचाल पूछ दिया ! न चाहते हुए भी तिरकुट बाबू को रुकना पड़ा. हाल चाल बता ही रहे थे कि बाबा बेत्तर ने आश्चर्य युक्त व्यंग खड़ा करते हुए कहा ,, अच्छा दिन.… अच्छे दिन आने वाले हैं...कहाँ ! कैसा ! किसका ! सब कुछ नाश हो जायेगा ! कुछ बचने नहीं जा रहा है ! तिरकुट बाबू से रहा ना गया वो बोल ही दिया, 60 साल जिसे दिया आज तक उनसे अच्छे दिन की बात पूछ नहीं पाये। अब 60 दिन में ही अच्छा दिन खोजने लगे. धैर्य रखिये बाबा आपके जीते जी अच्छे दिन आएंगे। बाबा बेत्तर तिलमिला गए थे, बहस तर्क हीन और असंसदीय हो गया था. सीमा और मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा पार हो गयी थी ठीक उसी जिस तरह देश के सदन में होता है. कुछ देर से एक सज्जन इस बहस पर नजर बनाये हुए था. वह खड़ा हो कर अपनी ओर सबका ध्यान आकर्षित करता है फिर बोलता है. भारतीय सभ्यता में राम राज्य को आदर्श राज्य कहा जाता है. राम राज्य की कल्पना करना दिवा स्वप्न होगा। क्योकि आज अगर राम है भी तो वे सत्ता पाने की होड़ और पद पाने के दौड़ में शामिल नहीं होंगे क्योकि राम तो त्याग के प्रतिमूर्ति थे.उन्हें मर्यादा पुरसोत्तम कहा जाता है. वर्तमान में सत्ता के कई ध्रुब आप लोगों को नजर होंगे लेकिन वास्तव में दो ही है. एक पांडवो का दूसरा कौडवों का. क्या फर्क परता है सत्ता किसी के पास रहे.पांडवो के पास गया तो जुवे पर दांव लगाकर हार जायेंगे और कौरवों के पास गया तो चीर हरण कर लेंगे। लेकिन निराश होने की जरुरत नहीं ! वर्तमान राजनीति का परिदृश्य पांडवो और कुरु वंशियों के कालखण्ड जैसा जरूर है लेकिन आपकी स्थिति लोकतंत्रिक है. इसलिए खुद को बदलिये देश बदलेगा। इतना कहकर वह युवक जा चुका था. तिरकुट बाबू मौका देख कर खिसक लिए तो बाबा बेत्तर भी कान खुजाते हुए निकल लिए. लेकिन मतवाला चाय पान की कॉम्बो दुकान पर राजनितिक बहस जारी था.
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