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Tuesday 16 December 2014

छप्पने हजार का लोन पास कर दो न बाबू !

सुबह सुबह खेतों क्यारियों पर बिनचुन कक्का बुझे मन से भारी कदमों के साथ चल रहे थे. यह समय गेहूं बोआई का है. उनके खेतों की बोआई नहीं हुई है. पूंजी  का आभाव है. अधिकांश  किसानों ने बोआई कर ली है. सुखो बाबू अपने बासा से बिनचुन कक्का के हरकतों को देख कर दूर से ही जोरदार  आवाज  में बिनचुन कक्का का हाल चाल लिया और कहा खेत पड़ती रखें हो हम किस दिन काम आयेंगे. सबसे पांच का सैकड़ा लेते हैं.  तुम अपने आदमी हो जो मन में हो दे देना. बिनचुन कक्का जोर से बोले अरे आप तो घर के आदमी हैं जरूरत होगी  तो जरूर बतायेंगे. तभी पगडंडी पर चुल्हाय मरर के साथ बाबा बेत्तर दांतुन करते हुए आ रहे हैं. दोनों आपस में बात कर रहें हैं बाबा बेत्तर चुल्हाय मरर से पूछ रहे हैं। ....... तो क्या कहता था मैनेजर ! चुल्हाय मरर बताता है मैनैजर कहता था मेरा सीना 56 इंच का है. मैने कहा बाबू छप्पने हजार का लोन पास कर दो न बाबू ! दोनों हंसते हैं तभी बाबा बेत्तर की नजर बुनचुन कक्का पर पड़ती है. बाबा बुनचुन कक्का के खाली खेत की ओर नजर डालते हैं और बुनचुन कक्का को डांटने के अंदाज में कहते हैं, तुमको कहते थे न बाबू जी के श्राद्ध पर इतना बड़ा पोपो भंडारा करने की जरूरत नहीं है. सारे  पैसे का तुमने भोज कर दिया. अब बताओ खेत बोआई करने के लिए कहां से लाओगे पैसे  ! बिनचुन कक्का कहते हैं अब जो हो गया बाबा उस बात को दोहराने से क्या फायदा ! बाबा बेत्तर पूछते हैं अच्छा तुमने तो लोन के लिए भी आवेदन दिया था क्या हुआ ! मत पूछिये बाबा उधर से निराश हो चुके हैं. बाबा बेत्तर कहते हैं ऐसे नहीं मिलेगा हक, हक छिनना पड़ेगा. चलो बैंक चल कर धरना पर बैठते हैं कैसे नहीं देगा लोन, लोन देना पड़ेगा. बाबा बेत्तर कहते हैं कितना का लोन करवाया तुम तो मेरे अपने आदमी हो. आज ही चलो बैंक दस बजे घर पर पहुंच जाना. यह कह कर बाबा बेत्तर आगे बढ़ जाते हैं और चुल्हाय मरर बिनचुन कक्का को धीरे से कहता है. अरे भाई बाबा क्या लोन पास करवायेंगे. लोन पास करने के लिए अलगे सेटिंग है. 15 परसेंट पर खुले आम है और रहा लोन का पैसा लौटाने की बात कौन लौटा देता है. बात मान लो भैया नाम बाबा का ही रहेगा लेकिन हम लोग अंदरे अंदर 15 परसेंट पर सेटिंग कर लेंगे. बिनचुन कक्का कुछ सोच कर कहते हैं भाई ऐसा लोन तो सुखो बाबू भी देते हैं. फिर समय बरबाद करने क्या फायदा ! चुल्हाय मरर कहते हैं फिर तुम्हारी जो मरजी भैया, हम चलते हैं. चुल्हाय मरर तेज कदम से बाबा बेत्तर के बराबर पहुंचने का प्रयास करते हैं और बिनचुन क्कका के कदम सुखो बाबू के बासा की ओर बढ़ जाते हैं...

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